Harela and Bhitauli

Harela_and_Bhitauli Uttarakhand Festival

उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में मनाया जाने वाला हरेला एक नए सत्र की शुरुआत के एक वर्ष में तीन बार पड़ता है। यह कुमाऊँनी हिन्दू लोक पर्व चैत्र (मार्च / अप्रैल), आश्विन (सितंबर / अक्टूबर) के महीने में शरद नवरात्रि और श्रावण (जुलाई के अंत) के महीने में दोनों नवरात्रियों, चैत्र नवरात्रि के दौरान मनाया जाता है।

"हरेली" का अर्थ - "हरियाली" से है। यह त्यौहार वर्षा ऋतु के आगमन का प्रतीक है, जो श्रावण मास में मनाया जाता है। इस दिन सभी पूजा करने के लिए गौरी, महेश्वर, गणेश आदि देवी-देवताओं की छोटी मूर्तियाँ बनाते हैं। इस त्यौहार के पहले दिन, महिलाओं द्वारा मिट्टी में बीज़ बोए जाते हैं। इसके पश्चात इन्हें पानी से सींचा जाता है। इस 9 दिनों के त्योहार (दो नवरात्रियों) के पहले दिन, महिलाएं मिट्टी में 7 प्रकार के अनाज बोती हैं, जो भविष्य की फसल के लिए प्रतीकात्मक है। अंकुरण के दौरान पौधे में होने वाली पत्तियों को "हरेला" कहा जाता है। लोगों द्वारा इसे अपने सिर पर या कानों के पीछे रखते हैं और अपने दोस्तों व रिश्तेदारों को भी भेजी जाती है क्योंकि इसे शुभ माना जाता है। इस त्यौहार के बाद "भिटौली" आता है।
.
"भिटौली" का सामान्य अर्थ - "भेंट या मुलाकात करना" होता है। यह एक भावनात्मक परंपरा है। जिसमें विवाहित लड़की के मायके वाले में से भाई, माता-पिता या अन्य परिजन उससे मिलने उसके ससुराल जाते हैं। साथ में, वे फल, वस्त्र व मिठाईयाँ आदि लेकर भी जाते हैं। इसके साथ, यह परिवार की युवा लड़कियों को पैसे या भेंट भी दी जाती है।

 

 

विशेषताएँ

  • पहले दिन महिलाएं टोकरी में मिट्टी भरती हैं और उनमें 7 प्रकार के बीज बोती हैं।
  • इस दिन श्रावण हरेला के दौरान, मिट्टी की मूर्तियाँ पूजा के लिए गौरी, महेश्वर और गणेश की बनाई जाती हैं।
  • लोग हरेला के कटे हुए ब्लेड को अपने सिर पर रखते हैं और इसे अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को भी भेजते हैं।
  • परिवार की युवा लड़कियों को पैसे भेंट किए जाते हैं।