Kuchh Nee Kannee Sarakaar

Uttarakhand Kuchh_Nee_Kannee_Sarakaar UK Academe

कुछ नी कन्नी सरकार जैं कड़ैपर पैली छंछेड़ु बंणदू थौ -2
वीं कड़ै पर अब हलवा अर
फिर चौमिन कू छैगी रोजगार
तब बोल्दन लोग कि कुछ नी कन्नी सरकार।

पैली गौं-गौं मा श्रमदान होंदा था
ढोल -नगाड़ौं बजै तैं अर अपड़ा - अपड़ा
कुल्ला दाथड़ौं ली तैं लोग
गौं का चारी तरफै
की सफाई करी तैईं पर्यावरण प्रदूषण तैं भगै देंदा था
अब लोग बैठ्यांछन खुट्यों पसारोक
अर सरकार देणी छ रोजगार
तब बोल्दन लोग कि कुछ नी कन्नी सरकार।

सच माणा त पैली का लोग प्रदूषण का बारा जाणदै निथा
तबैत गुठुयारों मा कुलणौ पिछनैईं
रस्तो मां अर इथा तककि पाणी का धारौं तक
भि थुपड़ा रंदा था लग्या लैट्रिन का
अब घर- घर मा लैट्रिन ह्वैगेन तैयार
तब बोल्दन लोग कि कुछ नी कन्नी सरकार।

पैली मजबूरी मा पैदल जाण पड़दु थौ
स्कूल मा, दुकानी मा, रिश्तेदारी अर
नौकरी कन्नक तैं भी पैदलै जाण पड़दु थ
मुंड मा होया कांधी मा हो दुद्दे अर
चार- चार मण कू बोझ पैदलै लिजाण पड़दु थौ
आज गौ- गौ मा सड़क जाण सी
घर- घर ह्वैगन मोटर कार
तब बोल्दन लोग कि कुछ नी कन्नी सरकारं

 

 

पैली का जनाना ग्यों अर कोदू पिसण कतै
सुबेर त जांदरू रिगौंदा था
अर श्यामकु उखल्यारौं मा साट्टी झंगोरा की घाणी
रंदी थै दिख्याणी

जख मा कि कुल्ल सासू- ब्वार्यों का झगड़ा होंदा था
अब जगा- जगौ ह्वैगी चक्यों की भरमार
तब छन्न बोन्या कि कुछ नी कन्नी सरकार।

पैली का छोरा त स्कूल मा भि
बिनै सुलार पैर्यां चलि जांदा था
अर पाटी पर लेखीतै बिना
कौफी किताब्यों क याद भि कर्याल्दा था
अर अब त जलमदै नर्स छ बोन्नी
कि कख छ येकू कुर्ता सुलार
तब बोल्दन कि कुछ नी कन्नी सरकार।

पैली लोग जब बीमार होंदा था
त देवतौं का दरवाजा खटखटांदा थ
अस्पताल नि होण सीक हैजा
अर माता जनीं भयंकर बीमारिन त
गौं का गौं बांजा पड़ी जांदा था
आज सड़क अर अस्पताल होण सीक
झट्ट होणू छ उपचार
तब छन लोग बोन्या कि कुछ नी कन्नी सरकार।

पैली का लोग अनपढ़ होंदा था
किलै कि स्कूल दूर होक सीक
उ वख तक पौंछी निसकदा था
अर अनपढ़ होण सीक ऊंका दिल मा जात पात
ऊंच नीच अर अपणू
विराणू जना भेद भाव जन्म लेंदा था
जातैं रूढिवादिता बोल्दन
आज गौं -गौ मा स्कूल कालेज खुन्न सीक
अर शिक्षा कु प्रचार -प्रसार
होण सीक ह्वैगी समाज कू बेड़ा पार
तब छन बोन्या कि कुछ नी कन्नी सरकार।

पैली हमारा समाज मा बलि प्रथा कू जादै बोल बाला थौ
क्वी बीमार होंदू थौ त
झट्ट वैमा कुखड़ी- बाखरी ऊंचे तेवई वीं सणी
पट्ट मारी देंदा था
कति जगौं आज भि होणू छ
पर अब सतसंग कू प्रचार -प्रसार होण सीक
बंद ह्वैग्यन कुखड़ी -बाखरी खया देवतौं का द्वार
तब छन बोन्या कि कुछ नी कन्नी सरकार।

पैली लोग गरैयों सणीदेवता माणी तैं पुजदा था
कैकू काम ख्राब होण पर त
पंडा जी बोल्दा था कि ये का गरै खराब छन चन्या
ऊं सणी पूजि द्यान
टाज मनखी चंद्रमा तै दूर
मंगल गरै पर बसण क ह्वैगी तैयार
तब छन लोग बोन्या कि कुछ नी कन्नी सरकार।

पैली लोग जाणदै नि था कि
मुख्यमंत्री क्या हवै अर विधायक क्या हवै
जौं का द्वारा सरकार चल्दी छ
आज सरकार न जगा जगौं लगैल्यन जनता दरबार
अर फिर भी छन लोग बोन्या कि कुछ नी कन्नी सरकार।

मै आप लोगू सणी फिर याद दिलौंदू छौं
कि पैली जैंकड़ै पर छंछेड़ु बंणदू थौऊ
बीं पर आज हलवा
अर फिर चौमिन कू ह्वैंगी रोजगार
समाज का भला भला वैखू
अब नि बोलने कि कुछ नि कन्नी सरकार

आज का नवयुवक भायौं अर बैण्यों
सुदि निरा बैठ्या बेकार
मेरी दृष्टि मा त सब्बी धाणी छ कन्नी सरकार।

 

ये व्यंग्य रुपी कविता उन अकर्मण्य  लोगों को समर्पित है जो कि अपने-आप तो कुछ नहीं करते हाथ पर हाथ धरकर बैठे रहते हैं इनके हिसाब से तो इनका मुँह हाथ भी सरकार ही धुलवाए। ऐसे ही लोग अक्सर कहते हैं-' नभयाँ कुछ नी कन्नी सरकार'।

पहले जिस कढ़ाही पर पलेऊ/छंछेड़ू (छाँछ मे झंगरयाल,कुटे हुए समई चावल) पकता था उसी कढ़ाही पर अब दुकानों पर अब हलवा और चाऊमीन का जगह-जगह रोजगार हो रहा है।तब लोग बोलते हैं कि 'कुछ नी कन्नी सरकार'।

 

 

पहले गाँव-गाँव में श्रमदान होता था।ढोल- नगाड़े  बजाकर सभी मिल-जुलकर काम करते थे एक -दूसरे का हाथ बटाते थे। अपने -अपने कुटल-दथड़ू(खोदने और काटने के औजार)लेकर गाँव के चारों ओर आने जाने वाले रास्तों की साफ-सफाई कर प्रदूषण को दूर रखते थे। अब लोग पैर पसारकर हाथ पर हाथ धरकर सीमेंटिड डिडँली  में बैठे हैं।सरकार मनेरगा इत्यादि स्कीमों से रोजगार दे रही है तब लोग कहते हैं कि 'कुछ नी कन्नी सरकार'।

सच कहूँ तो पहले लोग प्रदूषण के बारे में जानते ही नहीं थे तभी तो लोग घरों के पिछवाड़े, रास्तों में,गदेरों में यहाँ तक कि पानी के स्थानों मे भी शौच के लिये खुले में जाया करते थे।अब तो सरकार ने घर-घर शौचालय बनवा दिए हैं ।तब लोग बोलते हैं कि 'कुछ नी कन्नी सरकार'।

पहले लोग मजबूरी में जब सड़कें न थी यातायात के साधन नहीं थे पैदल ही आना-जाना पड़ता था।स्कूल,दुकान और रिश्तेदारी में दूर-दूर तक पैदल ही आना -जाना होता था यहाँ तक कि नौकरी के लिए भी पैदल कई-कई किलोमीटर पैदल ही ऊकाल- ऊँधार नापना पड़ता था। सिर पर रखो या फिर कँधे पर चार-चार मन का बोझ पैदल ढोना पड़ता था। आज गाँव-गाँव में सड़क से घर-घर तक मोटर-कार और बाइक जा रही हैं तब लोग कहते हैं कि 'कुछ नी कन्नी सरकार'।

पहले के जमाने में गेहूँ ,जौ और क्वादू (मंडुवा) पीसने के लिए भोर में ही जँदरू रिंगाना(चक्की चलानी होती) पड़ता था। यही नहीं शाम को उरख्यल(ओखली) में सट्टी झुंगरु की घाणी (धान और समई के कूटने के लिए)दिखाई पड़ती थीजिसमें सास-बहु में तकरार/नोंकझोंक दिखाई/सुनाई पड़ती थी उसकी जगह अब गाँव-गाँव में   कूटने-पीसने के लिए बिजली की चक्कियों की भरमार है तब लोग कहते हैं कि 'कुछ नी कन्नी सरकार'।

पहले के जमाने मे लड़के बिना पजामा के ही स्कूल पहुँच जाया करते थे। बिना पाटी(तख्ती) लिखे कापी किताबों का लिखा भी याद करते थे।अब तो जन्म लेते ही नर्स कहती है' कहाँ है, इसका कुर्ता -सलवार'।तब लोग कहते हैं कि 'कुछ नी कन्नी सरकार'।

पहले लोग बीमार होते थे तो देवी देवताओं के द्वार खटखटाते थे अस्पताल न होने से हैजा,छोटी माता,बड़ी माता जैसी भयंकर बीमारियों से गाँव के गाँव  बाँझ(उजड़) हो जाते थे। आज अस्पताल और सड़क होने से झट से उपचार   हो रहा है। तब लोग कहते हैं 'कुछ नी कन्नी सरकार'।

 

 

पहले के लोग अनपढ़ होते थे क्योंकि स्कूल दूर-दूर हुआ करते थे वे वहाँ तक पहुँच ही नहीं पाते थे और अनपढ़ होने से उनके मन में जात-पाँत,ऊँच-नीच और अपने-पराये का भेद जन्म लेता था जिसको रुढ़िवादिता बोलते थे आज गाँव-गाँव में शिक्षा का प्रचार-प्रसार से समाज का बेड़ा पार हो गया है।तब लोग बोलते हैं कि ' कुछ नी कन्नी सरकार'।

पहले समाज में बलि-प्रथा का ज्यादा बोलबाला था कोई बीमार होता था तो उसमें झट से कुकुड़ बखरु(मुर्गा या बकरा) भैंट चढ़ाने के लिए मार दिया जाता था परन्तु अब सत्संग के प्रचार-प्रसार से मुर्गा/बकरा देवी/देवताओं को चढा़ना बंद हो गया। तब लोग कहते हैं कि' कुछ नी कन्नी सरकार'।

पहले ग्रहों को  देवता जैसा मानकर पूजा जाता था। किसी का काम खराब होने पर पण्डित जी कह दिया करते थे कि इसके ग्रह खराब चल रहे हैं उसके निवारण हेतु पूजा -विधान होता था।आज लोग चन्द्रमा से दूर मंगल ग्रह पर बसने को तैयार हैं । तब लोग कहते हैं कि 'कुछ नी कन्नी सरकार'।

पहले के लोग नहीं जानते थे कि  मुख्यमंत्री या विधायक क्या होते हैं? जिनके दरवाजे से सरकार चलती थी। आज सरकार ने जगह-जगह जनता-दरबार लगाकर सरकार को हर जगह पहुँचा दिया है। तब लोग बोलते हैं कि 'कुछ नी कन्नी सरकार'।

मैं ,आप लोगों को फिर से याद दिलाता हूँ कि पहले जिस कढ़ाही में पहले छंछेड़ू बनता था आज उससे हलवा और चाऊमीन का रोजगार हो रहा है और समाज का भला ही हो है तब।।

अब नहीं बोलना कि 'नभयाँ,कुछ नी कन्नी सरकार '। आजकल के नौजवानों, भाई-बहनों यों ही बेकार मत बैठो, मेरी समझ से सभी कुछ कर रही है सरकार।

Jamuna Das Pathak